हर रोज़ डायरी में कुछ लिखता रहा, कभी कुछ नया सा कभी कुछ पुराना सा,
बीते दिनों के जख्मों पे कुछ मरहम सा, कुछ पूरा सा कुछ अधूरा सा,
डायरी के पन्नों में ख्वाबों की दुनिया बुनता रहा मैं,
अपने हर लफ्ज में शायद तुम्हें तलाश रहा हूँ मैं.
बीते दिनों के जख्मों पे कुछ मरहम सा, कुछ पूरा सा कुछ अधूरा सा,
डायरी के पन्नों में ख्वाबों की दुनिया बुनता रहा मैं,
अपने हर लफ्ज में शायद तुम्हें तलाश रहा हूँ मैं.
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